केंद्र त्रिकोण principle को समझने के लिए कपिलमुनि की सांख्यदर्शन समझना बहुत जरुरी है , सृष्टि की कैसे उत्पति हुई है उस का वैदिक दर्शन समझना जरुरी है और सम्बंधित शास्त्र पढ़ना जरुरी है। में थोड़ा संकेत यह पर देता हु.
सूर्य के चार extreme बिंदु है और चार बिंदु में चार प्रकार की शक्ति निहित होती है।
इसी चार बिंदु को चार दिशा बोलते है और हर दिशा की अपनी एक शक्ति निहित होती है। (दिशा means direction, aim, orientation)
जैसे चार प्रकार के वर्ण है और उन से चार प्रकार की शक्ति होती है।
वर्ण ब्राह्मण, मेधा शक्ति
वर्ण क्षत्रिये, रक्षा शक्ति
वर्ण वैश्य , वाणिज्य शक्ति
वर्ण शूद्र, श्रम शक्ति
पुरुष और प्रकृति (शक्ति) का सम्बन्ध से ही पूरी कुंडली चल रही है।
प्रणव ॐ जिस से सृष्टि उत्पन हुई है उस के तीन रूप है।
ब्रह्मा पुरुष (केंद्र) - सरस्वती शक्ति (त्रिकोण)
विष्णु पुरुष (केंद्र) - लक्ष्मी शक्ति (त्रिकोण)
शिव पुरुष(केंद्र) - काली शक्ति (त्रिकोण)
वेदांता में शक्ति उसे कहते है जिस के तीन गुण " सत्व,रज,तम " निहित है।
सूर्य के चार बिंदु (दिशा) को केंद्र और साथ में निहित शक्ति को त्रिकोण कहते है।
प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि |
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान् || 13.20||
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान् || 13.20||
I hope this will help to understand Parashara fundamental concept of jyotish.
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Please also refer to my earlier article.
Vijay Goel
Astrologer and Guide
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1 comment:
बहुत सुंदर
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