Friday, July 18, 2014

Important rule for Dasa delianation from Laghu Parashara.

Dear friends,

Please go through my earlier notes in the link 
http://vjgoel.blogspot.in/2010/12/results-of-antardasa-of-yogakarak-in.html

I have stressed a very important rule given in laghu Parashari and pointed out many time by Shri K N Rao ji. This rule is ignored by almost all astrologers who do Parashara astrology. I am again re-stressing its importance.
"Antardasa of the functional benefic (yoga karaka) planet in the Mahadasa of functional Malefic is exceedingly bad if both planets does not form any sambandh (relationship)."

Today i am producing more examples :

Female
Date:          September 7, 1984
Time:          23:22:00
Time Zone:     5:30:00 (East of GMT)
Place:         77 E 13' 00", 28 N 40' 00"  Delhi, India



Vimsottari Dasa:

 Jup MD:  2009-08-04  -  2025-08-04
  Merc AD:  2014-04-05  -  2016-07-11

In this chart , Jupitar Mahadasa is running which is functional malefic and Mercury antardasa is running which is functional benefic (extremely yoga karak). Both Jupiter and Mercury does not have any sambandh of four kind.


This native suffered a paralytic stroke on 15th July 2014 and now suffering from facial paralysis.


One more example :

Male
Date:          December 18, 1965
Time:          4:12:00
Time Zone:     5:30:00 (East of GMT)
Place:         77 E 13' 00", 28 N 40' 00" Delhi, India


Vimsottari Dasa:

 Sat MD:  2001-02-20  -  2020-02-21
  Sun AD:  2011-02-12  -  2012-01-25


This native lost his son in Sat\Sun Dasha.
[date of death 04.11.2011]. Here Saturn is functional benefic and Sun is functional malefic aspected by another functional malefic Jupiter. Both Saturn and Sun does not have any Sambandh (relationship) 

I hope this will help.


Best Wishes,
Vijay Goel
Astrologer and Vaastukar
email : Askme@VijayGoel.net
Mob, Whataap : +91 800 300 4666
www.IndianAstroVedic.com



Wednesday, July 16, 2014

Some Misconseption in 'Panchak'

 [This article complied by other, original source not known to me, but facts are presented in a good way from Muhurtha chintamani, etc. As i will get the time i will put some more facts on it.]

पंचक में क्या हैं पाँच निषेध कार्य अपने परिपथ भ्रमण के काल में गोचरवश जब-जब चद्रँमा कुंभ और मीन राशियों में अथवा कहें कि धनिष्ठा नक्षत्र के उत्तरार्ध में, शतभिषा, पूर्वामाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्रों में होता है, तो इस काल को पंचक कहते हैं। अधिकांश लोगों में यह भ्रम और भय व्याप्त है कि इन नक्षत्रों में शुभ कर्म वर्जित होते हैं अथवा इन नक्षत्रों में प्रारम्भ किए गए कार्य पूर्ण नहीं होते और होते भी हैं तो पूरे पांच बार प्रयास करने बाद।

यह मान्यता भी चली आ रही है कि पंचकों में कहीं से कोई सगे-सम्बन्धी की मृत्यु की सूचना मिलती है तो ऐसे में पांच दुःखद समाचार और भी सुनने को मिलते हैं। लोगों में
भ्रम तो यहाँ तक व्याप्त है कि इन दिनों में सनातन धर्म के कोई भी शुभ कार्य अशुभता अवश्य देते हैं। सबसे पहले यह मय, भ्रम और अंधविश्वास तो मन से एक दम ही निकाल दें कि तथाकथित यह पांच नक्षत्र सदैव अहितकारी ही सिद्ध होते हैं।

अनेक जातक ग्रथों और विशेषरुप से मुहूर्त चिन्तामणि और राज भार्तण्ड में पंचको के शुभाशुभ विचार का विवरण मिलता है। यदि गहनता से पंचकों के विषय में अध्ययन किया जाए तो हम पाते हैं कि इनका निषेध केवल पांच कर्मों मेंही किया जाता है और उनमें भी स्पष्ट रुप से आवश्यक कार्यों के लिए विकल्प लिखे गए हैं -
पंचकों में जिन पांच कार्यों को न करने का वर्णन है उनके विषय में उनके दुष्परिणाम भी दिए गए हैं। इनको करना यदि आवश्कता बन जाए तो कुछ सरल से उपयों द्वारा उनको सम्पन्न भी किया जा सकता है।

पहला, लकड़ी का सामान क्रय न करना और लकड़ी एकत्रित न करना। विशेष रुप से घनिष्ठा नक्षत्र नक्षत्र में इस कर्म से बचें क्योंकि इससे अग्नि भय का संकट हो सकता है। यदि यह कर्म करना आवश्यक हो तो लकड़ी के कुछ भाग से हवन कर लें। मेरी मान्यता है कि इस ग्रह के स्वामी मंगल हैं और उसके इष्ट देव हनुमान जी हैं। कार्य से पूर्व धनिष्ढा नक्षत्र में उनका स्मरण अवश्य कर लें, अज्ञात भय से अवश्य ही रक्षा होगी।

दूसरा, पंचकों में विशेषरुप से दक्षिण दिशा की यात्रा न करना। दक्षिण दिशा के अधिष्ठाता ‘यम’ हैं, इसलिए भी यात्रा को निषेध माना गया है। अति आवश्यक रुप से की जाने वाली यात्राओं के लिए पूर्व में किसी शुभ घड़ी में ‘चाला’ कर सकते हैं। इसके लिए यात्रा में प्रयुक्त कुछ पैसे,
हल्दी तथा चावल अपने इष्ट देव के सम्मुख रख लें और यात्रा को मंगलमय बनाने की प्रार्थना करें।
यात्रा वाले दिन रखे यह पैसे भी साथ ले लें। हल्दी और चावल किसी वृक्ष की जड़ में छोड दें अथवा जल प्रवाहित कर दें।

तीसरा, भवन में छत न डलवाना। मान्यता है कि पंचकों में भवन में डाली गयी छत उस
घर में कलह का कारण बनती है, वहाँ से सुख और शांति का पलायन हो जाता है। मान्यता तो यहाँ तक है कि इन नक्षत्रों में डाली गयी छत कमजोर होती है और-भवन स्वामियों में अलगाव तक करवा देती है। इन नक्षत्रों में यहि छत डलवा रहे हों तो उससे पूर्व इष्ट देव को मिष्ठानादि से प्रारम्भ करें और प्रसाद स्वरूप वह काम करने वाले लोगों में बांटकर उनकी प्रसन्नता बटोरें।

चौथा, पंचकों में चारपाई नहीं बनवाई जाती इसके पीछे का भाव भी वही लकड़ी के क्रय
करने वाला ही है। पंचको में लकड़ी को विशेष महत्व दिया गया है।

पांचवाँ, सबसे महत्वपूर्ण है कि पंचको में शव दाह नहीं करते। इसके पीछे भी कारण लकडियों का ही है क्योंकि दाह के लिए लकड़ियों की आवश्कता होती है। शव दाह के समय शास्त्रों में कुछ कर्म दिए गए हैं। यदि कुछ नहीं करना है तो आटे अथवा कुशा के पांच पुतले बनाकर शव के साथ संस्कार करवा लेना चहिए ।
मुहूर्त चिंतामणि में स्पष्ट लिखा है कि अति आावश्यक कार्यों के लिए पंचको में भी घनिष्ठा नक्षत्र का अंत, शतमिषा नक्षत्र का मध्य, भाद्रपद का प्रारम्भ और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के अन्त की पांच घड़िया कार्य के लिए चुनी जा सकती हैं।

पंचको में नक्षत्रों के अनुरुप अनेक कार्य शुभ माने गए हैं।
इसीलिए यह भ्रम पालना सर्वथा अज्ञानता है कि धनिष्ठा और शतमिषा नामक नक्षत्र यात्रा, वस्त्र, आभूषण आदि के क्रय-विक्रय के लिए बहुत शुभ हैं। पूर्वाभाद्र नक्षत्र में कोर्ट-कचहरी की ही नहीं,महत्वपूर्ण कार्यों के निर्णय आदि में भी शुभता प्रदान करते हैं। भूमि पूजन के लिए उत्तराभाद्रपद नक्षत्र शुभ सिद्व होता है। इस नक्षत्र में पूर्वनियोजित अधूरी और बड़ी-बड़ी परियोजनाओं का श्रीगणेश किया जा सकता है। विद्या, संगीत, सौभ्य कर्म और गुह्य विधाओं का श्री गणेश रेवती नक्षत्र में करना अति उत्तम रहता है।



विजय गोयल
ज्योतिषी एवं वास्तुकार
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