प्रकृति का मुख्य गुण सत रज
और तम है । सात्विक गुण , राजसिक गुण और तामसिक गुण के कारण ही प्रकृति में जीव
में movement यानि गति है । इसलिए 'त्रिगुणात्मक
सृष्टि' भी कहते है । त्रिगुण माया भी कहते है । इस माया से सब जीव बंधे हुये है ।
इसी सिद्धांत को त्रिकोण गुण कहते है । यह एक शक्ति है यानि resource है इसलिए महाऋषि ने जनम कुंडली में त्रिकोण (1,5,9 भाव ) को लक्ष्मी स्थान बताया है । लक्ष्मी का मतलब resource होता है य माया शक्ति भी कह सकते है । इसी त्रिकोण भाव को भाग्य भी कहते है । इसी त्रिकोण-संबंध को ग्रहो में गुरु और राहू द्वारा देखते है । गुरु का 1,5,9 वी दृष्टि जीव को ऊपर की ओर गति देता है यानि भाग्य में उत्थान व राहू की 1,9,5 वी दृष्टि जीव को नीचे की ओर दखेलता है यानि माया में फंसना है ।
पुरुषार्थ से तात्पर्य मानव के लक्ष्य या उद्देश्य से है ('पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः')। पुरुषार्थ = पुरुष+अर्थ = अर्थात मानव को 'क्या' प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रायः मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसलिए इन्हें 'पुरुषार्थचतुष्टय' भी कहते हैं। महर्षि मनु पुरुषार्थ चतुष्टय के प्रतिपादक हैं। इसी पुरुषार्थ को जनम कुंडली में केंद्र (1,4,7,10) भाव कहता है और विष्णु स्थान से जाना जाता है । ग्रहो में इसी संबंध को दो पुरुषार्थ के ग्रह मंगल और शनि से देखा जाता है । मंगल 1-4 (पारिवारिक या internal कर्म ) का संबंध को और शनि 1-10 (सामाजिक या external कर्म) को इंगित करता है । दोनों ग्रह विशेस रूप के केंद्र संबंध को बताते है ।
इसी सिद्धांत को त्रिकोण गुण कहते है । यह एक शक्ति है यानि resource है इसलिए महाऋषि ने जनम कुंडली में त्रिकोण (1,5,9 भाव ) को लक्ष्मी स्थान बताया है । लक्ष्मी का मतलब resource होता है य माया शक्ति भी कह सकते है । इसी त्रिकोण भाव को भाग्य भी कहते है । इसी त्रिकोण-संबंध को ग्रहो में गुरु और राहू द्वारा देखते है । गुरु का 1,5,9 वी दृष्टि जीव को ऊपर की ओर गति देता है यानि भाग्य में उत्थान व राहू की 1,9,5 वी दृष्टि जीव को नीचे की ओर दखेलता है यानि माया में फंसना है ।
पुरुषार्थ से तात्पर्य मानव के लक्ष्य या उद्देश्य से है ('पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः')। पुरुषार्थ = पुरुष+अर्थ = अर्थात मानव को 'क्या' प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रायः मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसलिए इन्हें 'पुरुषार्थचतुष्टय' भी कहते हैं। महर्षि मनु पुरुषार्थ चतुष्टय के प्रतिपादक हैं। इसी पुरुषार्थ को जनम कुंडली में केंद्र (1,4,7,10) भाव कहता है और विष्णु स्थान से जाना जाता है । ग्रहो में इसी संबंध को दो पुरुषार्थ के ग्रह मंगल और शनि से देखा जाता है । मंगल 1-4 (पारिवारिक या internal कर्म ) का संबंध को और शनि 1-10 (सामाजिक या external कर्म) को इंगित करता है । दोनों ग्रह विशेस रूप के केंद्र संबंध को बताते है ।
जनम कुंडली में माया और पुरुषार्थ
का खेल ही देखते है । क्या भाग्य लेकर आया है
क्या पुरुषार्थ करना है । इसी को देखने के लिए त्रिंकोण और
केंद्र का संबंध देखा जाता है ।
यही संबंध ज्योतिष का मूल सिद्धांत है ।
पहला भाव केंद्र और त्रिकोण दोनों में है,
यह पहला भाव का मतलब point of reference
से है । पाराशर के बहुत
सारे लग्न दिया है जैसे होरा लग्न ,इन्दु लग्न , भाव लग्न ,
घटी
लग्न , आरूढ़ लग्न, सूर्य लग्न, चन्द्र लग्न आदि । किसी भी point
को reference
मानना
ही लग्न है ।
काल पुरुष कुंडली में केंद्र तीन होते है जो past (3,6,9,12), present (1,4,7,10), future (2,5,8,11) को इंगित करते है इनको spiritual, physical, mental houses भी कहते है ।
और त्रिकोण चार होते है जो धर्म (1,5,9), अर्थ (2,6,10), काम (3,7,11), मोक्ष (4,8,12) त्रिकोण कहते है ।
काल पुरुष कुंडली में केंद्र तीन होते है जो past (3,6,9,12), present (1,4,7,10), future (2,5,8,11) को इंगित करते है इनको spiritual, physical, mental houses भी कहते है ।
और त्रिकोण चार होते है जो धर्म (1,5,9), अर्थ (2,6,10), काम (3,7,11), मोक्ष (4,8,12) त्रिकोण कहते है ।
यह बिलकुल basics है ।
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धन्यवाद ।
विजय गोयल
मोबाइल +91 8003004666
वैबसाइट : www.vijaygoel.net