शनि ग्रह को ऋषियों ने "तामसिक" category मे रखा है ।
पहले यहा समझना है की सात्विक, राजसिक और तामसिक क्या गुण है॥ इस का विवरण गीता में बहुत अच्छे से समझाया है और भी बहुत ग्रंथो में बताया गया है । मन चित इंद्रिय आत्मा बुद्धि शरीर के संबंध की जो भी ग्रंथ ने चर्चा की है वहा इस गुण की चर्चा अवश्य हुई है ।
पहले यहा समझना है की सात्विक, राजसिक और तामसिक क्या गुण है॥ इस का विवरण गीता में बहुत अच्छे से समझाया है और भी बहुत ग्रंथो में बताया गया है । मन चित इंद्रिय आत्मा बुद्धि शरीर के संबंध की जो भी ग्रंथ ने चर्चा की है वहा इस गुण की चर्चा अवश्य हुई है ।
मूल प्रश्न है की शनि ग्रह को क्यो तामसिक कहा है ? ? जबकि जहा भी शनि देव
की कहानी में जो भी चर्चा आती है वहा कोई तामसिक व्यवहार नहीं दिखता है ।
मेरा मत है की 'शरीर' द्वारा जो भी 'चेष्टाए' होती है उस कर्म का कारकतत्त्व शनि को प्राप्त है । 'परिश्रम' शब्द शनि का 'पर्याय' है । शनि प्रधान व्यक्ति अथक परिश्रमी होता है ।मेरा अनुभव भी यही है की शनि प्रधान व्यक्ति को शरीर रक्षा और निर्वाह की विशेष मनन होता है । इसलिए दुख,आयु, रोग, का मूल कारक शनि है। 'रोटी कपड़ा मकान' शनि प्रधान व्यक्तितव का ही मूल नारा है ।
मूल प्रश्न पे लोटते है ; शरीर की 'चेष्टाए' मूल रूप से 'इंद्रियो' के आधीन रहती है और 'स्वा' कल्याण का अति बोध है । जो कर्म इंद्रियो के आधीन है वो कर्म सात्विक तो नहीं कह सकते । यहा एक मूल कारण है शनि को तामसिक में रखने का ।
जब शनि का संबंद बृहस्पति से होता है तो 'स्वा' का अति बोध समाप्त हो जाता है 'सर्व कल्याण' की तरफ बुद्धि का रुख होता है । इस प्रकार के लोग समाज में बहुत उच्चाइयो को छूते है , उद्योगपति , ठेकेदार, समाज के ठेकेदार (नेता) बनते है ।
Best Wishes
Astrologer Vijay Goel
Jaipur
Mob: +918003004666
web: www.vijaygoel.net
मेरा मत है की 'शरीर' द्वारा जो भी 'चेष्टाए' होती है उस कर्म का कारकतत्त्व शनि को प्राप्त है । 'परिश्रम' शब्द शनि का 'पर्याय' है । शनि प्रधान व्यक्ति अथक परिश्रमी होता है ।मेरा अनुभव भी यही है की शनि प्रधान व्यक्ति को शरीर रक्षा और निर्वाह की विशेष मनन होता है । इसलिए दुख,आयु, रोग, का मूल कारक शनि है। 'रोटी कपड़ा मकान' शनि प्रधान व्यक्तितव का ही मूल नारा है ।
मूल प्रश्न पे लोटते है ; शरीर की 'चेष्टाए' मूल रूप से 'इंद्रियो' के आधीन रहती है और 'स्वा' कल्याण का अति बोध है । जो कर्म इंद्रियो के आधीन है वो कर्म सात्विक तो नहीं कह सकते । यहा एक मूल कारण है शनि को तामसिक में रखने का ।
जब शनि का संबंद बृहस्पति से होता है तो 'स्वा' का अति बोध समाप्त हो जाता है 'सर्व कल्याण' की तरफ बुद्धि का रुख होता है । इस प्रकार के लोग समाज में बहुत उच्चाइयो को छूते है , उद्योगपति , ठेकेदार, समाज के ठेकेदार (नेता) बनते है ।
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