Sunday, May 10, 2015

Original Nadi Astrology Teaching Series Post 14

This teachings is written by scholar  shri Ram Krishan Goel, now residing in Gurgoen. This Nadi system where Ascendent is considered equally very important. Now for us he has produced the series to understand the basics and naunces of original Nadi Astrology. This particular material is cover under his copyright as wherever applicable.

His material will be soon available in print.  He can be contacted through 09810919479

[Vijay Goel] I find it is expansion of R G Rao's nandi nadi concept with ascendent. All nadis has same basic but little bit differet in applications. Much of the basic content is taken from "Core of Nadi Astrology" of Late RG Rao.


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POST No  14

दोस्तो

मेंने आपको कारक बताये।

अब मे करको का उपयोग बताता हू । की इन का उपयोग केसे किया जाये।

तो मेरा सवाल है।

एक औरत खेतो मे होती हुई पानी के लिए कुआ पर जाती है। जब कुआ की पक्की बनी  मुड़ेर पर पहुचती है। तो देखती है की कुआ मे सोना पड़ा है। पर साथ ही जंगल मे शेर मुह खोल कर बेथा है। अत वह डर जाती है। ओर वहाँ पड़ा टूटा फूटा पुराना हथियार उठा लेती है। तो वहा दूरी पर गुजर रहा कोई व्यक्ति देख लेता है ओर वह भी सोंना लेना  चाहता है।

अत आपसे अनुरोध है की प्लानेट्स ( ग्रहो)को कुंण्डलि मे ऐसे बिठाओ की उपरोक्त position या स्थिति बन जाये।

कारक मे आपको पहले बता चुका हू। किसी भी लग्न की कुंडली ले सकते हो या बिना लग्न के।


मानता हू की सवाल अति मुश्किल है पर इसी एक सवाल से 100 प्रोब्लॉम दूर होंगी।

please गलत सही जो भी कुंडली बने वह बनाये। दूसरे ग्रुपों से भी मदद ले सकते है।

यहा नाड़ी ओर पारशारी मे कोई फर्क नही है।

हर एक मेंबर को कारको का उपयोग कर कुंडली बनानी है। सभी ग्रह होना जरूरी नही है। कोई के position ओर शेर ओर दूसरा आदमी ओर हथियार से सम्बंदित ग्रह बेठना काफी है।

हर एक मेंबर को कारको का उपयोग कर कुंडली बनानी है। सभी ग्रह होना जरूरी नही है। कुआ  के position ओर शेर ओर दूसरा आदमी ओर औरत हथियार से सम्बंदित ग्रह बेठना काफी है।


यह POST No  14 है

आप सभी मेंबरो से अनुरोध है की इस सवाल को सॉल्व करे ।

ओर अपने जवाब शीघ्र भेजे

इससे जुड़े आगे के सवाल बाद मे करूँगा


याद रखना इस तरह के स्वालो पर ध्यान नही दिया ओर ये सोच लिया की गोयल  बता देंगे तो आपको आगे समझ नही आएगा । यहा तर्क जरूरी है। ओर चर्चा भी।

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Answer to this post is in next post no 15.

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Please go through these notes.


Thankyou
Best Wishes,
Astrologer Vijay Goel
Jaipur
Mob : 8003004666


Original Nadi Astrology Teaching Series Post 13

This teachings written by scholar shri Ram Krishan Goel, now residing in Gurgoen. This Nadi system where Ascendent is considered equally very important. Now for us he has produced the series to understand the basics and naunces of original Nadi Astrology. This particular material is cover under his copyright as wherever applicable.

His material will be soon available in print.  He can be contacted through 09810919479

[Vijay Goel] I find it is expansion of R G Rao's nandi nadi concept with ascendent. All nadis has same basic but little bit differet in applications. Much of the basic content is taken from "Core of Nadi Astrology" of Late RG Rao.

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POST  --13

भावों का महत्त्व/ज्ञान।

कुंडली के 12 घर जातक के जीवन के विभिन्न अंगो/घटनाओं/अनुभवों को दृष्टिगोचर करवाते हैं।चाहे वो जातक/बच्चे के जन्म का समय हो अथवा किसी घटना के प्रत्यक्षीकरण का समय अथवा प्रश्नकर्ता के प्रश्न का समय।
अब भावों के स्वभाव का विस्तृत विवरण-


1.प्रथम भाव : यह लग्न भी कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है।

2. द्वितीय भाव : इसे धन भाव भी कहते हैं। इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे में जाना जाता है।

3. तृतीय भाव : इसे पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है।

4. चतुर्थ स्थान : इसे मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, गृह सौख्‍य, वाहन सौख्‍य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है।

5. पंचम भाव : इसे सुत भाव भी कहते हैं। इससे संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यश, नौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है।

6. छठा भाव : इसे शत्रु या रोग स्थान भी कहते हैं। इससे जातक के श‍त्रु, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है।

7.सातवाँ भाव : विवाह सौख्य, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान इस भाव से होता है। इसे विवाह स्थान कहते हैं।

8.आठवाँ भाव : इस भाव को मृत्यु स्थान कहते हैं। इससे आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है।गुप्त ज्ञान ,खोज, भू गर्भ,अति विशेष घटनाये आदि का ज्ञान इस भाव से होता है।

9.नवाँ भाव : इसे भाग्य स्थान कहते हैं। यह भाव आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताता है।

10.दसवाँ भाव : इसे कर्म स्थान कहते हैं। इससे पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है।

11.ग्यारहवाँ भाव : इसे लाभ भाव कहते हैं। इससे मित्र, बहू-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है।

12.बारहवाँ भाव : इसे व्यय स्थान भी कहते हैं। इससे कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है।
07:29
हिन्दी ट्रांसलेशन श्री पवन शर्मा जी, ज्योतिषी , गाज़ियाबाद  द्वारा ।
07:33
Significance of the Houses –

the twelve houses in horoscope signify different aspects of the native’s life (or which may be the birth time of the child (or) the time of an event taking place (or) the time of the query)
Now the significances are specified for the native or man’s life.

First house- personality, body, face, appearance, health

Second house-wealth, speech, family, neck, throat, right eye

Third house-brother, courage, short journeys, hands , right ear, friends ( the quality of friend will be judge by quality of Rashi or planet posited in this house in comparison with first house or planet posited in first house.
Fourth house - education, mother, house or land, conveyance, happiness, chest.

Fifth house – children, intelligence, fame, position, love, stomach.

Sixth house- diseases, debts, sorrow, injuries, notoriety, enemies

Seventh house- marriage, desire, sex and sexual diseases,

Earth house- death or longevity, sexual organs, obstacles, unearned wealth, accidents

Ninth house- fortune, past life, results of past work or karmas, religion,

Tenth house- profession, father, rank, authority, honour, success, knees,

Eleventh house- gains, out comes, fulfillment of needs and desire,
 friends, brother or sister, left ear or ankles.

Twelfth house- losses, misery, expenditure, comfort of bed, salvation or Moksha, feet, left eye


  ( Note – How to use these significance or karaks of houses is the most important factor of astrology and correct prediction depends upon the proper implementation of these karaks- this will be explained  in examples)

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Please go through these notes.

Thankyou
Best Wishes,
Vijay Goel
Jaipur
Mob : 8003004666

Original Nadi Astrology Teaching Series Post 12


This teachings written by scholar shri Ram Krishan Goel, now residing in Gurgoen. This Nadi system where Ascendent is considered equally very important. Now for us he has produced the series to understand the basics and naunces of original Nadi Astrology. This particular material is cover under his copyright as wherever applicable.

His material will be soon available in print.  He can be contacted through 09810919479

[Vijay Goel] I find it is expansion of R G Rao's nandi nadi concept with ascendent. All nadis has same basic but little bit differet in applications. Much of the basic content is taken from "Core of Nadi Astrology" of Late RG Rao.

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POST No 12 friendship-enmity

ग्रहो मे दोस्ती ओर दुश्मनी। दोस्ती ओर दुश्मनी का सही उपयोग आपके फलित मे 4 चाँद लगा देगा। इसलिये पढ़ कर बहुत विचार आवश्यक है।

सूर्य-
गुरु।मंगल।बुद्ध। चन्द्र।का दोस्त।
 शनि ।राहु। शुक्र का दुश्मन।
शनि एवम् केतु का सैद्धान्तिक दोस्त दुश्मन केतु सूर्य को रुकावट डालता है पर सम्मान देता है। इसीलिए राजा राज्य का झंड़ा रखते है।

 चन्द्र।
 सूर्य , मंगल का दोस्त
शुक एवम् राहु का दुश्मन।
शुक्र बुध एवम् शनि का सैद्धान्तिक दोस्त ओर दुश्मन।

 मंगल
सूर्य, गुरु, चन्द्र दोस्त।
शनि ,बुद्ध, राहू दुश्मन।
शुक्र सैद्धान्तिक दोस्त ।

 बुद्ध
सूर्य ,शुक्र, शनि, राहू दोस्त ।
 मंगल ,केतु दुश्मन।
गुरु, चंद्र सैद्धान्तिक दोस्त ।

 ब्रिस्पति ,
सूर्य, मंगल, चन्द्र, शनि दोस्त ।
राहू दुश्मन ।
चन्द्र , बुद्ध ,शुक्र , केतु सैद्धान्तिक दोस्त ।
 घटता चन्द्र गुरु को नुकसान पहुचाता है। ( स्थिति अनुसार अपना फायदा नुकसान देखते है ये सैद्धान्तिक दोस्त ग्रह।

 शुक्र
 शनि ,बुद्ध ,मंगल राहु दोस्त ।
 सूर्य ,चन्द्र ,केतू दुश्मन ।
गुरु सैद्धान्तिक दोस्त ( गुरु ,शुक्र युति शुभ होती है पर सेहत के लिए खराब होती है। )

 शनि
गुरु ,शुक्र ,बुद्ध दोस्त ।
मंगल ,सूर्य ,केतू दुश्मन ।
मंगल, राहू सैद्धान्तिक दोस्त ओर दुश्मन । (सूर्य स्थिति अनुसार व्यहार बदल लेता है।)

राहू
 बुद्ध, शुक्र राहू का गुरु है दोस्त।
मंगल ,चन्द्र, सूर्य दुश्मन।
शनि, गुरु सैद्धान्तिक दोस्त ।

 केतू।
कोई दोस्त नही।
शनि, बुद्ध दुश्मन ।
सूर्य , गुरु सैद्धान्तिक दोस्त । केतु चन्द्र को रुकावट डालता है पर धर्मिक परिवर्ती प्रदान करता है।

सैद्धांतिक दोस्त ओर दुश्मन। कृपया नोट करे। सैद्धान्तिक दुश्मनी ओर दोस्ती आपको ज्योतिष मे कही नही मिलेगी। परन्तु प्रिक्रिती मै वास्तव मे इस तरह होता है।

जेसे की पत्नी ओर पति एक दूसरे के।छिपे दुश्मन होते है। पत्नी पति से सब कुछ ले लेती है जेसे आमदनी,तनखा, घर, यहॉं तक की सेमेंन आदि आदि।
 ठीक इस तरह पुरुस भी सब लेता है घर मे कार्य कराता है। बच्चे पैदा करता है। पेट मे स्त्री रखती है ओर हक पिता का होता है।
परन्तु अगर पुरुस कोई गलत कार्य करे या स्त्री करे , तो वह एक दूसरे को करने नही देंगे।जेसे पुरुष स्त्री दोनो मे से कोई पर पुरुस या स्त्री गमंन करे तो ऐसा नही होने देंगे। इसे कहते है सैद्धान्तिक दोस्ती ओर दुश्मनी।
गोद लिए गए बच्चे के साथ यही सैद्धान्तिक दोस्ती ओर दुश्मनी कार्य करती है।
जेसे सूर्य ओर शनि। सूर्य नही चाहता शनि को नुकसान हो। ओर शनि के फायदे के लिए उसे धमकी देता रहता है। इसलिए ज्यादातर लोगो को सूर्य उच्च पदवी देने की कोसिस करता है।
 इस दुश्मनी को एक ओर तरह से।समझ सकते हो । वह की जब पिता नीच का होता है तो शनि है सूर्य का नीच भंग करता है । अर्थात दुश्मन होते हुए भी सूर्य की मदद करता है। आखिर क्यो। क्योकि सिद्धान्त अमुसार पुत्र पिता को नुकसान नही करता।
ठीक इसी प्रकार दैत्य गुरु शुक्राचार्य भी आपने राजा को परेसानी मे नही देख सकते । ओर नियम अनुसार किसी भी गुरु को किसी की भी मदद करनी चाहिये। अत शुक्र भी सूर्य का नीच भंग राज योग बना देता है।
लेकिन गोचर मे या यहाँ शनि के दोस्त आ जाये तो उनके साथ मिलकर सूर्य को नुकसान करेगा। अगर सूर्य ओर शनि के दोस्त आ जाये तो अति फायदा करेगा।
ओर शनि सूर्य को अलसी मेहनती या अधिक कार्य से पीड़ित कर देता है टांगो मे चोट पहुचा देता है। परंतु समय से पहले आयु देता है। ओर समय आने पर जीवन समाप्त कर देता है।
 सूर्य राजा है केंद्रीय सरकार का अधिपति है । शनि प्रोफेशन है। सूर्य शनि को सरकारी नोकरी देता है इसलिए सैद्धान्तिक दोस्त कहा है। इस लिए ये भी सैद्धान्तिक दोस्त एवम् दुश्मन है।

ऐसे ही चन्द्र ओर बुद्ध। गुरु ओर बुद्ध। इसलिये आपने कुछ लोगो को देखा होगा की वे आपस मे खूब लड़ते मरते है ।ओर लोग समझते है की अब एक दूसरे से बात नही करेंगे। परंतु 10 मिनट बाद एक साथ चाय पी रहे होंगे। यह सैद्धान्तिक दोस्ती दुश्मनी है।
 इसका उपयोग ज्योतिष मे केसे करेगे। उदाहरण के लिए आपकी कोई संतान झगड़ा करके आपसे दूर चली जाये। ओर आपको बता भी दे की वे कहाँ ओर केसे है। तो भी आप परेसान रहोगे। ओर आपको कोई संतान सुख नही होगा। अब वही संतान विदेश मे कार्य हेतु चली जाये । ओर बहुत लंबे समय तक वही रहे तो भी आप को संतान सुख नही होगा परन्तु आप खुश होंगे । जबकि पहले केस मे दुखी। फिर भी झगड़ा करने वाली संतान समय समय पर मदद करती है। इसे कहते है सैद्धान्तिक उपयोग।
नोट सैद्धान्तिक दोस्ती दुश्मनी मे भी ग्रह अपने नियम नही तोड़ते है।


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Vijay Goel
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